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श्री अग्रवंश वेलफेयर फाउंडेशन की नीव 25 जून 2020 में रखी गयी है | अग्रमिलन.कॉम पूर्ण रूप से श्री अग्रवंश वेलफेयर फाउंडेशन के द्वारा संचालित की जा रही है | जिसका मुख्य उद्देश्य अग्रवंशियो को विवाह सम्बन्ध करवाने में सहयोग प्रदान करना है |

अध्यक्ष सन्देश

श्री अग्रवंश वेलफेयर फाउंडेशन के सहयोग से अग्रवंशियो में एक मुहीम शुरू करने की पहल करने जा रहे है | इस मुहीम के तहत अग्रमिलन.कॉम के द्वारा हुए हर एक रिश्ते के लिए पेड़ लगाया जायेगा, जिसका संरक्षण भी श्री अग्रवंश वेलफेयर फाउंडेशन के द्वारा ही किया जायेगा | हम चाहते है की भारत के सभी अग्रवंशी इस मुहीम के साथ जुड़े और श्री अग्रवंश वेलफेयर फाउंडेशन के साथ जुड़े कर अपना सहयोग प्रदान करे |

 

आपके सहयोग का अभिलाषी

आपका मुकेश कुमार अग्रवाल

सचिव सन्देश

मेरे प्रेरणा श्रोत, डॉ. श्री रामबाबू गोयल जी और उनके सहयोगी है, जिन्होंने सबसे पहले "अग्रमिलन ग्रेटर ग्वालियर" नामक व्हाटप्प ग्रुप संचालित किया, जो आज भी अग्रवंशियो में बहुत प्रचलित है| इस ग्रुप में कोई पदाधिकारी नहीं है, सभी अग्रवंशी मिलकर पूरे सहयोग के साथ अग्रवंशियो के बायोडाटा एकत्रित कर हर रविवार बैठक कर इस व्हाटप्प ग्रुप में उपलब्ध करवाते है| इस ग्रुप के सहयोग से कई अग्रवंशियो के विवाह सम्बन्ध पक्के हुए है| यहाँ से मुझे प्रेरणा मिली और आपने समाज की लिए कुछ करने का मन बनाया | इसलिए कुछ अग्रवंशियो ने मिलकर धन राशि एकत्रित कर अग्रमिलन को डिजिटल फॉर्मेट में लाने का संकल्प लिया | सबसे पहले अग्रमिलन.कॉम को डेस्कटॉप व्यू में उपलब्ध करवाने की सहमति बनी, और दूसरे चरण में मोबाइल एप्लीकेशन उपलब्ध करवाने की प्रक्रिया चल रही है |

 

आपके सहयोग का अभिलाषी

आपका अंकित बंसल

Office Bearer (Shree Agravansh Welfare Foundation)

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Mukesh Kumar Agrawal

President

State - Madhya Pradesh

Occupation - Civil Services & Govt Employee

Mo. No. - 9229455722

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Krishna Bihari Goyal

Vice President

State - Madhya Pradesh

Occupation - Business Person

Mo. No. - 9827611586

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Ankit Bansal

Secretary

State - Madhya Pradesh

Occupation - Business Person

Mo. No. - 9425337445

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Anil Agrawal

Joint Secretary

State - Madhya Pradesh

Occupation - Social Worker

Mo. No. - 9329682320

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Ramesh Chandra Bansal

Treserur

State - Madhya Pradesh

Occupation - Business Person

Mo. No. - 9425700511

अग्रोदय के महाराजा

श्री श्री 1008 श्री अग्रसेन महाराज

अग्रोदय के महाराजा

ai

अग्रसेन महाराज का प्रतिमा

राजकाल ४२५० BC से ६३७ AD

पूर्वाधिकारी महाराजा श्री वल्लभसेन जी

उत्तराधिकारी महाराजा श्री विभुसेन जी

पिता महाराजा श्री वल्लभसेन जी

माता महारानी श्रीमती भगवती देवी जी

जीवन परिचय

दिल्ली में स्थित अग्रसेन की बावली, जिसका निर्माण महाराजा अग्रसेन ने महाभारत काल में करवाया था।

धार्मिक मान्यतानुसार इनका जन्म सूर्यवंशीय महाराजा वल्लभ सेन के अन्तिमकाल और कलियुग के प्रारम्भ में आज से ५१८५ वर्ष पूर्व हुआ था। जो की समस्त खांडव प्रस्थ, बल्लभ गढ़, अग्र जनपद ( आज की दिल्ली, बल्लभ गढ़ और आगरा) के राजा थे उन के राज में कोई दुखी या लाचार नहीं था। बचपन से ही वे अपनी प्रजा में बहुत लोकप्रिय थे। वे एक धार्मिक, शांति दूत, प्रजा वत्सल, हिंसा विरोधी, बली प्रथा को बंद करवाने वाले, करुणानिधि, सब जीवों से प्रेम, स्नेह रखने वाले दयालू राजा थे। ये बल्लभ गढ़ और आगरा के राजा बल्लभ के ज्येष्ठ पुत्र, शूरसेन के बड़े भाई थे।

विवाह

समयानुसार युवावस्था में उन्हें राजा नागराज की कन्या राजकुमारी माधवी के स्वयंवर में शामिल होने का न्योता मिला। उस स्वयंवर में दूर-दूर से अनेक राजा और राजकुमार आए थे। यहां तक कि देवताओं के राजा इंद्र भी राजकुमारी के सौंदर्य के वशीभूत हो वहां पधारे थे। स्वयंवर में राजकुमारी माधवी ने राजकुमार अग्रसेन के गले में जयमाला डाल दी। यह दो अलग-अलग संप्रदायों, जातियों और संस्कृतियों का मेल था। जहां अग्रसेन सूर्यवंशी थे वहीं माधवी नागवंश की कन्या थीं।

इंद्र से टकराव

इस विवाह से इंद्र जलन और गुस्से से आपे से बाहर हो गये और उन्होंने प्रतापनगर में वर्षा का होना रोक दिया। चारों ओर त्राहि-त्राही मच गयी। लोग अकाल मृत्यु का ग्रास बनने लगे। तब महाराज अग्रसेन ने इंद्र के विरुद्ध युद्ध छेड दिया। चूंकि अग्रसेन धर्म-युद्ध लड रहे थे तो उनका पलडा भारी था जिसे देख देवताओं ने नारद ऋषि को मध्यस्थ बना दोनों के बीच सुलह करवा दी।

तपस्या

कुछ समय बाद महाराज अग्रसेन ने अपने प्रजा-जनों की खुशहाली के लिए काशी नगरी जा शिवजी की घोर तपस्या की, जिससे भगवान शिव ने प्रसन्न हो उन्हें माँ लक्ष्मी की तपस्या करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने परोपकार हेतु की गयी तपस्या से खुश हो उन्हें दर्शन दिए और कहा कि अपना एक नया राज्य बनाएं और क्षात्र धर्म का पालन करते हुवे अपने राज्य तथा प्रजा का पालन - पोषंण व रक्षा करें ! उनका राज्य हमेसा धन-धान्य से परिपूर्ण रहेगा|

अग्रोदय गणराज्य की स्थापना

अपने नये राज्य की स्थापना के लिए महाराज अग्रसेन ने अपनी रानी माधवी के साथ सारे भारतवर्ष का भ्रमण किया। इसी दौरान उन्हें एक जगह एक शेरनी एक शावक को जन्म देते दिखी, कहते है जन्म लेते ही शावक ने महाराजा अग्रसेन के हाथी को अपनी माँ के लिए संकट समझकर तत्काल हाथी पर छलांग लगा दी। उन्हें लगा कि यह दैवीय संदेश है जो इस वीरभूमि पर उन्हें राज्य स्थापित करने का संकेत दे रहा है। ॠषि मुनियों और ज्योतिषियों की सलाह पर नये राज्य का नाम अग्रेयगण या अग्रोदय रखा गया और जिस जगह शावक का जन्म हुआ था उस जगह अग्रोदय की राजधानी अग्रोहा की स्थापना की गई। यह जगह आज के हरियाणा के हिसार के पास हैं। आज भी यह स्थान अग्रवाल समाज के लिए पांचवे धाम के रूप में पूजा जाता है, वर्तमान में अग्रोहा विकास ट्रस्ट ने बहुत सुंदर मन्दिर, धर्मशालाएं आदि बनाकर यहां आने वाले अग्रवाल समाज के लोगो के लिए सुविधायें जुटा दी है।

समाजवाद के अग्रदूत

महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है। अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना हेतु उन्होंने नियम बनाया कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले प्रत्येक परिवार की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक परिवार उसे एक तत्कालीन प्रचलन का सिक्का व एक ईंट देगा, जिससे आसानी से नवागन्तुक परिवार स्वयं के लिए निवास स्थान व व्यापार का प्रबंध कर सके। महाराजा अग्रसेन ने तंत्रीय शासन प्रणाली के प्रतिकार में एक नयी व्यवस्था को जन्म दिया, उन्होंने पुनः वैदिक सनातन आर्य सस्कृंति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य की पुनर्गठन में कृषि-व्यापार, उद्योग, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा का बीड़ा उठाया।

इस तरह महाराज अग्रसेन के राजकाल में अग्रोदय गणराज्य ने दिन दूनी- रात चौगुनी तरक्की की। कहते हैं कि इसकी चरम स्मृद्धि के समय वहां लाखों व्यापारी रहा करते थे। वहां आने वाले नवागत परिवार को राज्य में बसने वाले परिवार सहायता के तौर पर एक रुपया और एक ईंट भेंट करते थे, इस तरह उस नवागत को लाखों रुपये और ईंटें अपने को स्थापित करने हेतु प्राप्त हो जाती थीं जिससे वह चिंता रहित हो अपना व्यापार शुरु कर लेता था।

अठारह यज्ञ

माता महालक्ष्मी की कृपा से महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य को 18 गणराज्यो में विभाजित कर एक विशाल राज्य का निर्माण किया था, जो इनके नाम पर अग्रेय गणराज्य या अग्रोदय कहलाया।। महर्षि गर्ग ने महाराजा अग्रसेन को 18 गणाधिपतियों के साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। यज्ञों में बैठे इन 18 गणाधिपतियों के नाम पर ही अग्रवंश के साढ़े सत्रह गोत्रो (अग्रवाल समाज) की स्थापना हुई। उस समय यज्ञों में पशुबलि अनिवार्य रूप से दी जाती थी। प्रथम यज्ञ के पुरोहित स्वयं गर्ग ॠषि बने, सबसे बड़े राजकुमार विभु को दीक्षित कर उन्हें गर्ग गोत्र से मंत्रित किया। इसी प्रकार दूसरा यज्ञ गोभिल ॠषि ने करवाया और द्वितीय गणाधिपति को गोयल गोत्र दिया। तीसरा यज्ञ गौतम ॠषि ने गोइन गोत्र धारण करवाया, चौथे में वत्स ॠषि ने बंसल गोत्र, पाँचवे में कौशिक ॠषि ने कंसल गोत्र, छठे शांडिल्य ॠषि ने सिंघल गोत्र, सातवे में मंगल ॠषि ने मंगल गोत्र, आठवें में जैमिन ने जिंदल गोत्र, नवें में तांड्य ॠषि ने तिंगल गोत्र, दसवें में और्व ॠषि ने ऐरन गोत्र, ग्यारवें में धौम्य ॠषि ने धारण गोत्र, बारहवें में मुदगल ॠषि ने मन्दल गोत्र, तेरहवें में वसिष्ठ ॠषि ने बिंदल गोत्र, चौदहवें में मैत्रेय ॠषि ने मित्तल गोत्र, पंद्रहवें कश्यप ॠषि ने कुच्छल गोत्र दिया। 17 यज्ञ पूर्ण हो चुके थे। जिस समय 18 वें यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि दी जा रही थी, महाराज अग्रसेन को उस दृश्य को देखकर घृणा उत्पन्न हो गई। उन्होंने यज्ञ को बीच में ही रोक दिया और कहा कि भविष्य में मेरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यज्ञ में पशुबलि नहीं देगा, न पशु को मारेगा, न माँस खाएगा और राज्य का हर व्यक्ति प्राणीमात्र की रक्षा करेगा। इस घटना से प्रभावित होकर उन्होंने अहिंसा धर्म को अपना लिया। इधर अंतिम और अठाहरवे यज्ञ में यज्ञाचार्यो द्वारा पशुबलि को अनिवार्य बताया गया, ना होने पर गोत्र अधूरा रह जाएगा, ऐसा कहा गया, परन्तु महाराजा अग्रसेन के आदेश पर अठारवें यज्ञ में नगेन्द्र ॠषि द्वारा नांगल गोत्र से अभिमंत्रित किया। यह गोत्र पशुबलि ना होने के कारण आधा माना जाता है, इस प्रकार अग्रवाल समाज मे आज भी 18 नही, साढ़े सत्रह गोत्र प्रचलित है।

साढ़े सत्रह गोत्र

श्री श्री 1008 श्री अग्रसेन महाराज

अग्रोदय के महाराजा

ai

अग्रसेन महाराज का प्रतिमा

श्री अग्रसेन महाराज आरती


जय श्री अग्र हरे, स्वामी जय श्री अग्र हरे।
कोटि कोटि नत मस्तक, सादर नमन करें।। जय श्री।


आश्विन शुक्ल एकं, नृप वल्लभ जय।
अग्र वंश संस्थापक, नागवंश ब्याहे।। जय श्री।


केसरिया थ्वज फहरे, छात्र चवंर धारे।
झांझ, नफीरी नौबत बाजत तब द्वारे।। जय श्री।


अग्रोहा राजधानी, इंद्र शरण आये!
गोत्र अट्ठारह अनुपम, चारण गुंड गाये।। जय श्री।


सत्य, अहिंसा पालक, न्याय, नीति, समता!
ईंट, रूपए की रीति, प्रकट करे ममता।। जय श्री।


ब्रहम्मा, विष्णु, शंकर, वर सिंहनी दीन्हा।।
कुल देवी महामाया, वैश्य करम कीन्हा।। जय श्री।


अग्रसेन जी की आरती, जो कोई नर गाये!
कहत त्रिलोक विनय से सुख संम्पति पाए।। जय श्री!


महाराज ने अपने राज्य को १८ गणों में विभाजित कर १८ गुरुओं के नाम पर १८ गोत्रों की स्थापना की थी। हर गोत्र अलग होने के बावजूद वे सब एक ही परिवार के अंग बने रहे। इसी कारण अग्रोहा भी सर्वंगिण उन्नति कर सका। राज्य के उन्हीं १८गणों से एक-एक प्रतिनिधि लेकर उन्होंने लोकतांत्रिक राज्य की स्थापना की, जिसका स्वरूप आज हमें वर्तमान लोकतंत्र प्रणाली में भी दिखायी पड़ता है। अग्रवालों के १८ गोत्र निम्नलिखित हैं -

 

गोत्रों के नाम

 

ऐरन बंसल बिंदल भंदल धारण गर्ग गोयल गोयन जिंदल
कंसल कुच्छल मधुकुल मंगल मित्तल नागल सिंघल तायल तिंगल

 

उस समय यज्ञ करना समृद्धि, वैभव और खुशहाली की निशानी माना जाता था। महाराज अग्रसेन ने बहुत सारे यज्ञ किए। एक बार यज्ञ में बली के लिए लाए गये घोडे को बहुत बेचैन और डरा हुआ पा उन्हें विचार आया कि ऐसी समृद्धि का क्या फायदा जो मूक पशुओं के खून से सराबोर हो। उसी समय उन्होंने अपने मंत्रियों के ना चाहने पर भी पशू बली पर रोक लगा दी। इसीलिए आज भी अग्रवंश समाज हिंसा से दूर ही रहता है। महाराज अग्रसेन के राज की वैभवता से उनके पड़ोसी राजा बहुत जलते थे। इसलिए वे बार-बार अग्रोहा पर आक्रमण करते रहते थे। बार-बार मुंहकी खाने के बावजूद उनके कारण राज्य में तनाव बना ही रहता था। इन युद्धों के कारण अग्रसेनजी के प्रजा की भलाई के कामों में विघ्न पड़ता रहता था। लोग भी भयभीत और रोज-रोज की लडाई से त्रस्त हो गये थे। इसी के साथ-साथ एक बार अग्रोहा में बडी भीषण आग लगी। उस पर किसी भी तरह काबू ना पाया जा सका। उस अग्निकांड से हजारों लोग बेघरबार हो गये और जीविका की तलाश में भारत के विभिन्न प्रदेशों में जा बसे। पर उन्होंने अपनी पहचान नहीं छोडी। वे सब आज भी अग्रवाल ही कहलवाना पसंद करते हैं और उसी 18 गोत्रों से अपनी पहचान बनाए हुए हैं। आज भी वे सब महाराज अग्रसेन द्वारा निर्देशित मार्ग का अनुसरण करते हैं। महाराजा अग्रसेन की राजधानी अग्रोहा थी। उनके शासन में अनुशासन का पालन होता था। जनता निष्ठापूर्वक स्वतंत्रता के साथ अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करती थी।

 

सन्यास

महाराज अग्रसेन ने १०८ वर्षों तक राज किया। उन्होंने जिन जीवन मूल्यों को ग्रहण किया उनमें परंपरा एवं प्रयोग का संतुलित सामंजस्य दिखाई देता है। उन्होंने एक ओर हिन्दू धर्म ग्रथों में क्षत्रिय वर्ण के लिए निर्देशित कर्मक्षेत्र को स्वीकार किया और दूसरी ओर देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नए आदर्श स्थापित किए। उनके जीवन के मूल रूप से तीन आदर्श हैं- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता। एक निश्‍चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श पर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु के हाथों में सौंपकर तपस्या करने चले गए। अपनी जिंदगी के अंतिम समय में महाराज ने अपने ज्येष्ट पुत्र विभू को सारी जिम्मेदारी सौंप कर वानप्रस्थ आश्रम अपना लिया।

आज भी इतिहास में महाराज अग्रसेन परम प्रतापी, धार्मिक, सहिष्णु, समाजवाद के प्रेरक महापुरुष के रूप में उल्लेखित हैं। देश में जगह-जगह अस्पताल, स्कूल, बावड़ी, धर्मशालाएँ आदि अग्रसेन के जीवन मूल्यों का आधार हैं और ये जीवन मूल्य मानव आस्था के प्रतीक हैं।

अग्रोहा धाम

प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित आग्रेय ही अग्रवालों का उद्‍गम स्थान आज का अग्रोहा है। दिल्ली से १९० तथा हिसार से २० किलोमीटर दूर हरियाणा में महाराजा अग्रसेन राष्ट्र मार्ग संख्या - १० हिसार - सिरसा बस मार्ग के किनारे एक खेड़े के रूप में स्थित है। जो कभी महाराजा अग्रसेन की राजधानी रही, यह नगर आज एक साधारण ग्राम के रूप में स्थित है जहाँ पांच सौ परिवारों की आबादी है। इसके समीप ही प्राचीन राजधानी अग्रेह (अग्रोहा) के अवशेष थेह के रूप में ६५० एकड भूमि में फैले हैं। जो अग्रसेन महाराज के अग्रोहा नगर के गौरव पूर्ण इतिहास को दर्शाते हैं।

अग्रसेन महाराज पर पुस्तके

वैसे महाराजा अग्रसेन पर अनगिनत पुस्तके लिखी जा चुकी हैं। सुप्रसिद्ध लेखक भारतेंदु हरिश्चंद्र, जो खुद भी अग्रवाल समुदाय से थे, ने १८७१ में "अग्रवालों की उत्पत्ति" नामक प्रामाणिक ग्रंथ लिखा है, जिसमें विस्तार से इनके बारे में बताया गया है।

भारत सरकार द्वारा सम्मान

२४ सितंबर १९७६ में भारत सरकार द्वारा २५ पैसे का डाक टिकट महाराजा अग्रसेन के नाम पर जारी किया गया। सन १९९५ में भारत सरकार ने दक्षिण कोरिया से ३५० करोड़ रूपये में एक विशेष तेल वाहक पोत (जहाज) खरीदा, जिसका नाम "महाराजा अग्रसेन" रखा गया। जिसकी क्षमता १,८०,०००० टन है। राष्ट्रीय राजमार्ग -१० का आधिकारिक नाम महाराजा अग्रसेन पर है।

अग्रसेन की बावली, जो दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास हैली रोड में स्थित है। यह ६० मीटर लम्बी व १५ मीटर चौड़ी बावड़ी है, जो पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम १९५८ के तहत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखरेख में हैं। सन २०१२ में भारतीय डाक अग्रसेन की बावली पर डाक टिकट जारी किया गया।

अन्य

  • एक सर्वे के अनुसार, देश की कुल इनकम टैक्स का २४% से अधिक हिस्सा अग्रसेन के वंशजो का हैं। कुल सामाजिक एवं धार्मिक दान में ६२% हिस्सा अग्रवंशियों का है। भारत में कुल ५०,००० मंदिर व तीर्थस्थल तथा कुल १६,००० गौशालाओं में से १२,००० अग्रवंशी वैश्य समुदाय द्वारा संचालित है। भारत के विकास में २५% योगदान महाराजा अग्रसेन के वंशजो का ही हैं, जिनकी जनसंख्या देश की जनसंख्या में महज १% है।[अग्रवाल] और राजवंशी समूदाय के लिए तीर्थस्थान अग्रोहा, हिसार जिला में भव्य अग्रसेन मंदिर का उद्घाटन ३१ अक्टूबर सन १९८२ को हरियाणा के मुख्यमंत्री माननीय श्री. भजनलाल के करकमलों द्वारा संपंन हुआ।
  • २९ सितंबर १९७६ को अग्रोहा धाम की नींव रखी गई एवं अग्रसेन मंदिर का निर्माण कार्य जनवरी १९७९ में वसंत पंचमी को आरंभ हुआ।
  • दिल्ली के निकट सारवान ग्राम में प्राप्त सन १३८४ फाल्गुनी सुदी ५ मंर के शिला लेख में ९९ वाणि जाय निवासिना शब्द अंकित है, जो की नेशनल म्युजियम क्रमांक बी-६ में सुरक्षित रखा हैं।

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Ramesh Chandra Bansal

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